tag:blogger.com,1999:blog-18577571254036882182024-03-05T08:16:13.058-08:00BBCwatchRajesh Joshihttp://www.blogger.com/profile/00229556478300789066noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1857757125403688218.post-39692788749576610722010-12-05T09:21:00.000-08:002010-12-05T09:28:15.773-08:00लैंपपोस्ट के नीचे दीनबंधु निराला<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQrfwJCNf9UgRYsPBqHCZKZ1GtT1CTUfgQ6Z2V0vl-dR-ezRNX_AIz2RMB-hMjCwC1dhsD-_zDa8GmY40BpYboxY-mVId5-E0tissMfNS9sHDzlct88Lazc1ls5dRgVnn57-MYx1kJgCFe/s1600/deenbandhu226.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 226px; height: 283px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQrfwJCNf9UgRYsPBqHCZKZ1GtT1CTUfgQ6Z2V0vl-dR-ezRNX_AIz2RMB-hMjCwC1dhsD-_zDa8GmY40BpYboxY-mVId5-E0tissMfNS9sHDzlct88Lazc1ls5dRgVnn57-MYx1kJgCFe/s320/deenbandhu226.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5547250612109196402" /></a>मैं आज तक किसी महापुरुष से नहीं मिला हूँ लेकिन कई महापुरुषों की कहानियाँ पढ़ी हैं कि कैसे अभावों में उनका जीवन बीता और कैसे लैंपपोस्ट के नीचे बैठकर रात रात को उन्होंने पढ़ाई पूरी की.<br /><br />दीनबंधु निराला कोई महापुरुष नहीं है. अलबत्ता उसका नाम दो महापुरुषों के नाम से बना है - महात्मा गाँधी के सहयोगी दीनबंधु एण्ड्रूज़ और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला. वो एक 18 वर्ष का किशोर है जिसे आप किसी शाम पटना के प्रसिद्ध गाँधी मैदान के बीचोंबीच लगे ऊँचे लैपपोस्ट के नीचे गणित के सवालों से जूझते देख सकते हैं.<br /><br />वहाँ सेना या सुरक्षा बलों में भर्ती होने की तैयारी कर रहे कुछ नौजवान कसरत करने आते हैं.<br /> <br />चने मुरमुरे बेचने वाला एक कमज़ोर वृद्ध ग्राहकों का इंतज़ार करते करते थक कर वहीं धरती पर बैठ गया था. कुछ बेरोज़गार नौजवान निरुद्देश्य टहल रहे थे. मैदान के चारों ओर सड़कों से मोटर, कार, ट्रक और टैम्पो के हॉर्न की आवाज़ें आ रही थीं. रह रह कर एक बारात में छोड़े गए पटाख़ों की आवाज़ें भी आसमान में गूँज जाती थीं.<br /><br />इतने शोर शराबे के बीच लैंपपोस्ट के नीचे बने चबूतरे पर दीनबंधु निराला अपनी किताबों पर झुका हुआ गणित के मुश्किल सवाल सुलझाने में लगा था.<br /> <br />मैं उसके बिलकुल पास जाकर बैठ गया और इंतज़ार करता रहा कि किसी तरह बात शुरू हो. लेकिन उसने नज़र उठाकर मेरी ओर नहीं देखा.<br /> <br />शोर के बीच भी वो एक स्वनिर्मित सन्नाटे में समाधिस्थ था ! <br /><br />मैंने देखा गणित के समीकरण उसकी कलम से निकल निकल कर कॉपी पर बिछते जा रहे थे, जिन्हें मैं नहीं समझ पाया. समीकरण सिद्ध होने के बाद लिखा गया अँग्रेज़ी का सिर्फ़ एक शब्द - प्रूव्ड यानी सिद्ध हुआ - मुझे समझ में आया.<br />आख़िर मैंने ही बातचीत की शुरुआत की. <br /><br />"क्या बनना चाहते हो?"<br /><br />"मैं मैकेनिकल इंजीनियर बनना चाहता हूँ और अगर ख़ुदा भी आ जाए तो मुझे वो रोक नहीं सकता". <br /><br />"कहाँ रहते हो?<br /><br />"यहाँ से तीन सौ किलोमीटर दूर सुपोल ज़िले के एक गाँव में."<br /><br />"पिछले साल कितने नंबर आए थे?"<br /><br />"पिछले साल पाँच सौ में से 385 नंबर आए थे. आइएससी (यानी बारहवीं) का इम्तिहान इस साल देने की तैयारी कर रहा हूँ."<br /><br />उसक आवाज़ में न तो ग़ुरूर का पुट था और न ही किशोर सुलभ कच्चा हौसला. उसके बयान में आश्वस्ति का भाव था और ठोस आत्मविश्वास था.<br /><br />वो सिर्फ़ परीक्षा की तैयारी के लिए पटना आया है और अपने कुछ दोस्तों के साथ रहता है. बदले में वो उनके लिए खाना बना देता है और इस बात के लिए वो अपने दोस्तों का बार बार शुक्र अदा करता है. <br /><br />बातचीत में काफ़ी वक़्त गुज़र गया था. अँधेरा कुछ और गहरा हो गया था. निराला ने अपने बस्ते में किताबें समेटीं और लैंपपोस्ट से दूर अँधेरे में आगे बढ़ गया. उसे अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना था.<br /><br />मैं चाहता हूँ कि दीनबंधु निराला मैकेनिकल इंजीनियर न बने.<br /><br />मैं जानता हूँ कि वो कोई और बड़ा सपना देखने और उसे हासिल करने की कुव्वत रखता है.<br /><br /><strong>(ये ब्ल़ॉग www.bbchindi.com पर प्रकाशित हो चुका है.)</strong>Rajesh Joshihttp://www.blogger.com/profile/00229556478300789066noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1857757125403688218.post-57812491548837151012009-03-21T16:16:00.000-07:002009-03-21T16:27:18.361-07:00इक्कीसवीं शताब्दि में हिंदी पत्रकारिता के सवाल!!<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMrI3fErN265H9VPy-7BFiZbtDNbajbeUAG7Yv0OL6DU_apvNpS-IkzwCtugt6glrprtVUwLVbbhzqzmRhEHA4hWaVyX4PQYk9Jut6CLBToo6kc62sGgP_fF9q29bWtZl-fRLAirmVTfxk/s1600-h/bbc-hindi.png"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 289px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMrI3fErN265H9VPy-7BFiZbtDNbajbeUAG7Yv0OL6DU_apvNpS-IkzwCtugt6glrprtVUwLVbbhzqzmRhEHA4hWaVyX4PQYk9Jut6CLBToo6kc62sGgP_fF9q29bWtZl-fRLAirmVTfxk/s320/bbc-hindi.png" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5315786510377664322" /></a><br />क्या आप सास और बहू के क़िस्से छापते हैं? नहीं.<br /><br />क्या आप भूत-प्रेत की कहानियाँ छापते हैं? नहीं.<br /><br />क्या आप शादीशुदा प्रोफ़ेसर की प्रेमकहानी पर ख़बर प्रसारित करते हैं? नहीं.<br /><br />तो क्यों पढ़े कोई आपको?<br /><br />बहुत अच्छा सवाल है.Rajesh Joshihttp://www.blogger.com/profile/00229556478300789066noreply@blogger.com6